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मनोरोगों के निवारण में संस्कृत शिक्षा कारगर, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सलाहकार गौरांगदास ने किया छात्रों को संबोधित, अगले सत्र से श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में इस्कॉन संभालेगा भोजन की व्यवस्था

मनोरोगों के निवारण में संस्कृत शिक्षा कारगर, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सलाहकार गौरांगदास ने किया छात्रों को संबोधित, अगले सत्र से श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में इस्कॉन संभालेगा भोजन की व्यवस्था

देवप्रयाग। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सलाहकार और श्रीकृष्ण भक्ति के संप्रदाय इस्कॉन के संत गौरांगदास ने कहा कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है, जो ज्ञान की क्षुधा शांत करती है। ज्ञान हमारी मनोदशा में परिवर्तन लाता है और इस प्रकार हमारा पूरा जीवन बदल जाता है। आज के तनाव भरे वातावरण में जबकि विश्व में लगभग सौ करोड़ लोग मनोरोगों की चपेट में हैं, ऐसे में संस्कृत ग्रंथ और शास्त्र ही इस समस्या का समाधान कर सकने में सक्षम हैं।


केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में इस्कॉन के अक्षयपात्र भोजनालय आरंभ कराने को लेकर भ्रमण पर आए गौरांगदास ने एक कार्यक्रम में छात्रों और अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा का उद्देश्य नौकरी के लिए एक से आगे निकलना नहीं होना चाहिए, बल्कि इसका असली उद्देश्य लोगों के हृदय में परिवर्तन करना है और यह हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों जैसे विभिन्न धर्मशास्त्रों की मानवता आधारित शिक्षा के आधार पर ही संभव है,क्योंकि संस्कृत शिक्षा में शरीर का ही ज्ञान नहीं, मन और आत्मा का भी ज्ञान है।


गोवर्धन इको विलेज के निदेशक श्री दास ने कहा कि संस्कृत भाषा, संस्कृत शिक्षा और संस्कृत के ज्ञान ने मुझे इस कदर प्रभावित किया कि मैं इंजीनियरिंग का क्षेत्र छोड़कर इस क्षेत्र में आकर बस गया हूं। उन्होंने कहा कि हमें तन से ही नहीं मन और आत्मा से भी शुद्ध, स्वस्थ और पवित्र होना चाहिए। यह काफी हद तक हमारे भोजन पर निर्भर है। हम श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में अक्षय पात्र भोजनालय शुरू करने जा रहे हैं, ताकि यहां के विद्यार्थियों को पौष्टिक और शुद्ध भोजन मिल सके। इस्कॉन वर्तमान में प्रतिदिन 40 लाख बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा रहा है। इस परिसर में भोजनालय शुरू करना हमारी इसी योजना का हिस्सा है।


आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैदिक गणित के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ प्रो. राम सुब्रमण्यम ने कहा कि विद्यार्थी का एक ही धर्म है, शुद्ध अंतःकरण से विद्यार्जन करना। इसके लिए चिंतन, श्रद्धा और स्मृति आवश्यक है। अज्ञानता कोई अपराध नहीं होता है, इसे छिपाना नहीं चाहिए। विद्यार्थियों को अपने संशयों को शांत अवश्य करवाना चाहिए। ग्रंथों का पारायण हमें निष्णात बनाता है। क्षमा उत्तम गुण है। उन्होंने कहा कि भोजन हमें कुछ घंटों की तृप्ति देता है, परंतु ज्ञान जीवनभर की तृप्ति देने के साथ ही मुक्ति भी देता है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि अगले सत्र से इस परिसर में इस्कॉन की ओर से भोजन की व्यवस्था की जाएगी। छात्रों को पौष्टिक भोजन मिलने से उनके शरीर और मन स्वस्थ रह पाएगा। उन्होंने कहा कि देवप्रयाग जैसे तीर्थ स्थल पर आने को लोग तरसते हैं। ऐसे में इस परिसर में पढ़ रहे बच्चे सौभाग्यशाली हैं कि तीर्थस्थल पर गंगा के मायके और श्री रघुनाथ भगवान के मंदिर के निकट वे विद्या अर्जन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को कुछ वर्ष यहां बिताकर संस्कृत शास्त्रों के ज्ञान को विश्वभर में बांटना होगा। उन्होंने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष हजार संस्कृत अध्यापक तैयार करता है। हमें गौरव है कि हम संस्कृत सेवा के अपने धर्म का सही ढंग से निर्वाह कर रहे हैं। नैक मूल्यांकन में हमें ए प्लस प्लस मिलना इस बात का प्रमाण है कि विश्वविद्यालय परिवार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की कसौटी पर खरा उतर रहा है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि छात्रों को विद्वानों की प्ररेणा और दिशा-निर्देशों को अक्षरशः आचरण में उतारना चाहिए। इससे पहले कुलपति ने अतिथियों का अंगवस्त्र से सम्मान किया। इस अवसर पर साहित्य विभाग की संयोजिका प्रो.चंद्रकला आर.कोंडी, डॉ. शैलेंद्रनारायण कोटियाल, डॉ. ब्रह्मानंद मिश्र आदि उपस्थित थे। इससे पहले कुलपति ने संत गौरांगदास, प्रो. राम सुब्रमण्यम तथा निदेशक प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम के साथ परिसर के भोजनालय, पुस्तकालय, यज्ञशाला आदि स्थानों का भ्रमण कर समस्यायें जानीं तथा अधिकारियों के साथ बैठक में विभिन्न मसलों पर चर्चा की।
दूसरी ओर, कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने भागीरथी और अलकनंदा के संगम पर मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती से भेंट कर उन्हें अविरल गंगा अभियान की सफलता की शुभकामनाएं दीं। कुलपति ने गंगा स्नान कर उमा भारती से मुलाकात कर उन्हें सम्मानित किया। उमा भारती संगम पर पूजा-अर्चना कर रही थीं। वे पांच दिन की निजी यात्रा पर उत्तराखंड आयी हैं। उनका यहां के पांचों प्रयागों पर पूजा-अर्चना का कार्यक्रम है। प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी से बातचीत में उमा भारती ने बताया कि उन्होंने गंगा की अविरलता और निर्मलता का कार्य शुरू किया था। इसमें कुछ कार्य शेष है। उन्होंने इसे पूरा करने का संकल्प लिया है। इसके लिए वे उत्तराखंड के तीर्थस्थलों की निजी यात्रा पर हैं तथा वे पांचों प्रयागों पर विशेष पूजा-अर्चना कर रही हैं। इसका आरंभ देवप्रयाग से किया गया है। प्रो. वरखेड़ी ने इसके लिए उमा भारती को शुभकामनाएं देते हुए उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना की। प्रो. वरखेड़ी के साथ मुंबई आईआईटी के प्रोफेसर राम सुब्रमण्यम तथा श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम भी थे। प्रो. वरखेड़ी ने संगम पर उपस्थित ब्राह्मणों से आग्रह किया कि वे उमा भारती जी के मिशन की सफलता के लिए उन्हें आशीर्वाद प्रदान करें।
(डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, जनसंपर्क अधिकारी)

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