संस्कारों के प्रति उदासीनता चिंताजनक, केन्द्रीय संस्कृत विवि देवप्रयाग में वेद विभाग की संगोष्ठी में पढ़े गये 42 शोधपत्र
संस्कारों के प्रति उदासीनता चिंताजनक, केन्द्रीय संस्कृत विवि देवप्रयाग में वेद विभाग की संगोष्ठी में पढ़े गये 42 शोधपत्र
देवप्रयाग। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आयोजित वेद विभाग की संगोष्ठी में 42 शोध-पत्रों का वाचन हुआ। विभिन्न स्थानों से आये विद्वानों ने सनातनी संस्कारों के निरंतर होते ह्रास पर चिंता जताते हुए इनकी वैज्ञानिकता का महत्त्व बताया।
’षोडशसंस्कारणां महत्त्वं प्रासंगिकता च’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के समापन पर मुख्य अतिथि पूर्व निदेशक श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर प्रो. बनमाली विश्वाल ने कहा कि हमें सनातनी संस्कारों को उसी रूप में ग्रहण करना चाहिए, जिसके लिए उनका प्रावधान किया गया है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में निदेशक शैक्षणिक वृत्त प्रो. बिश्वाल ने बहुतपत्नी तथा बहुपति प्रथा पर कहा कि वैदिक काल में इस परम्परा का प्रमाण मिलता है, परन्तु ये तात्कालिक परिस्थितियों के कारण था। इसके बाद पौराणिक काल में कुछ राजा और अन्य लोग एक से अधिक पत्नियां रखते थे और इसका कारण वैदिक काल की परंपरा बताते थे, यह गलत है।
सारस्वत अतिथि पूर्व अधिष्ठाता कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय प्रो.राजेश्वर प्रसाद मिश्र ने कहा कि सनातन धर्म में यूं तो 16 संस्कारों का प्रावधान है, परन्तु हम अब मुख्यतः दो ही का पालन करते हैं-पहला विवाह और दूसरा अंत्येष्टि। इनका पालन भी मजबूरी में किया जा रहा है। संस्कारों में भी विकृति आ चुकी है। यह पश्चिम का प्रभाव है। यह सनातन परम्परा के लिए चिंता की बात है। इस मसले पर हमें जागरूक होने की आवश्यकता है।
पूर्व धर्माधिकारी श्री बदरीनाथ धाम, जोशीमठ आचार्य भुवनचंद्र उनियाल ने दशावतार पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बदरीनाथ में कभी बहुत बड़ा विश्वविद्यालय हुआ करता था। वहां दस हजार लोगों के रहने और भोजन की व्यवस्था थी। उन्होंने कहा कि ज्ञान की दृष्टि से उत्तराखण्ड प्राचीन समय से समृद्ध रहा है। यहां अनेक ऋषियों का समागम होता रहा। बड़े-बड़े ऋषियों और तपस्वियों ने हिमालय की कंदराओं में तप किया है।
ज्योतिर्विद विनोद बिजल्वाण ने पंचगव्य का महत्त्व बताते हुए कहा कि इसके सेवन से संपूर्ण पाप नष्ट होते हैं। पंचगव्य में कैंसर जैसे भयंकर रोग को तक ठीक करने की शक्ति है। पंचगव्य पर बहुत शोध करने की आवश्यकता है, जिससे इसका लाभ मनुष्यों को मिल सके।
संयोजक डॉ. शैलेन्द्रप्रसाद उनियाल ने संगोष्ठी का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि कार्यक्रम में विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़े विद्वानों ने 42 शोधपत्र पढ़कर परिसर के विद्यार्थियों को लाभान्वित किया। अनेक लोगों ने ऑनलाइन माध्यम से भी संगोष्ठी का लाभ लिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने शोधपत्र प्रस्तोताओं और विद्यार्थियों का आह्वान किया वे इस संगोष्ठी में प्रस्तुत शोधपत्रों में प्राप्त ज्ञान को अपने जीवन में क्रियान्वित करें। उन्होंने कहा कि भारत के ऋषि-महात्माओं ने ज्ञान के रूप में हमें जो अमूल्य निधि विरासत में सौंपी है, उसे संरक्षित करना, उस पर शोष करना तथा आगे की पीढ़ियों तक प्रसारित करना हमारा पर दायित्व है। इससे मानव सेवा होने के साथ ही भारत के गौरव में भी वृद्धि होगी।
धन्यवाद ज्ञापन साहित्य विभाग के आचार्य डॉ. शैलेन्द्र नारायण कोटियाल ने किया। इस अवसर पर डॉ. श्रीओम शमार्, डॉ.अंकुर वत्स, डॉ. सुरेश शर्मा, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. मनीष शर्मा, डॉ. सुधांशु वर्मा, जनार्दन सुवेदी, पंकज कोटियाल, डॉ. आशुतोष तिवारी आदि उपस्थित थे।