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चमत्कार : सेना की मेजर को छात्रा बना दिया योग ने, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर देवप्रयाग में पढ़ाई करती है सैन्य अफसर संध्या 

चमत्कार : सेना की मेजर को छात्रा बना दिया योग ने, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर देवप्रयाग में पढ़ाई करती है सैन्य अफसर संध्या 

 

सेना दिवस पर संध्या को वर्दी में देख हुआ खुलासा, छात्र हुए गौरवान्वित

 

डाॅ0 वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल 

 

देवप्रयाग। अपने साथ पढ़ रही लड़की काॅलेज में ही सैन्य अधिकारी की वर्दी में दीख जाए तो हैरत होना स्वाभाविक है। संध्या ने ऐसा करके सभी को चैंका दिया। संध्या भारतीय सेना में मेजर है और आज वे भारतीय सेना दिवस पर वर्दी धारण कर परिसर आयी थीं। छात्रों के बीच पहली बार यह खुलासा हुआ तो वे गौरवान्वित हो गये।

संध्या कुमारी केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में एमएससी प्रथम वर्ष योग विज्ञान की छात्रा हैं। सेना से ’स्टडी लीव’ के अंतर्गत वे यहां अध्ययन करने आई हैं। जुलाई में संध्या ने यहां प्रवेश लिया था। अभी तक अधिकांश छात्र-छात्राओं, यहां तक कि अध्यापकों को भी संध्या के पद के विषय में जानकारी नहीं थी। संध्या अन्य छात्राओं की ही तरह छात्रावास में रहती है, जमीन में बैठकर मंत्रोच्चारण के साथ सात्विक भोजन करती हैं। वे परिसर के सभी कार्यक्रमों में सामान्य विद्यार्थियों की भांति प्रतिभाग करती हैं। कहीं से भी उनमें सेना अधिकारी के लक्षण दिखायी नहीं देते। इसलिए कभी भी छात्रों को उनके अधिकारी होने का भान नहीं हो पाया।

बुधवार को सेना की वर्दी में परिसर पहुंची संध्या को देखकर छात्रों को कुछ देर के लिए विश्वास नहीं हुआ कि संध्या की वर्दी असली है। पास जाने पर और बातचीत करने पर सचाई का उद्घाटन हुआ। बात पूरे परिसर में फैली तो संध्या के साथ फोटो खिंचवाने के लिए छात्रों का तांता लग गया। हर छात्र की जबान पर यही वाक्य था- इतनी बड़ी अफसर हमारे साथ पढ़ती है और हमें पता ही नहीं!

लखनऊ के एक साधारण परिवार की संध्या का सेना में अधिकारी बनने का मामला बड़ा दिलचस्प है। संध्या के माता-पिता वहीं लोकसेवा आयोग की परीक्षा तैयारी कर रहे बच्चों को पढ़ाते हैं। माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के दौरान संध्या ने डाॅक्टर बनने का सपना देखा था। हिंदी माध्यम से बारहवीं की पढ़ाई करने के बाद संध्या ने सीपीएमटी की तैयारी की। वे दिल्ली गयीं। वहां एक सैन्य अधिकारी जसपाल से मुलाकात हुई। उन्होंने सेना में अधिकारी बनने की प्रेरणा दी और रास्ता बताया। संध्या ने मन में ठाना और दिन-रात एक कर तैयारी में जुट गयीं। इसके लिए आयु सीमा 17 से 22 वर्ष के बीच थी। इसलिए 22 वर्ष की होने से पहले संध्या को इस उपलब्धि हो हासिल करना था। वे इसमें सफल रहीं। 2013 में संध्या को नियुक्ति मिल गयी।

संध्या को गुस्सा बहुत आता था। संध्या की माता कृति रस्तोगी ने मानसिक शांति और क्रोध को नियंत्रण के लिए उन्हें योग की सलाह दी। संध्या ने योग की पूरी पढ़ाई करने की ही ठानी और दो साल की पढ़ाई के लिए श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आ गयीं।

संध्या के पिता डाॅ0 शीलवंत सिंह आईएएस की तैयारी कर रहे छात्रों को निःशुल्क पढ़ाते हैं और छात्रवृत्ति भी प्रदान करते हैं। घर की इकलौती बेटी संध्या के इस ओहदे को प्राप्त करने और माता-पिता की आज्ञानुसार योग अध्ययन करने पर उनके माता-पिता प्रसन्न हैं।

लगभग छह महीने योग अध्ययन और अभ्यास के बाद का अनुभव बयां करते हुए संध्या कहती हैं कि उनके स्वभाव और मन में पहले की अपेक्षा बहुत सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।योग प्राध्यापक डाॅ0 सुधांशु वर्मा ने उन्हें प्राणायाम से मन की शांति के उपाय बताये, इस विधि का रोज अभ्यास करती हैं। योग ने उनके स्वास्थ्य में चमत्कार किया है। वे सेना मंे अन्य अफसरों को भी योग के फायदे बताकर इसके लिए प्रेरित करेंगी। संध्या बताती हैं कि तन-मन के स्वास्थ्य के लिए एक्सरसाइज की अपेक्षा योग अधिक लाभदायक है। संध्या की तैनाती वर्तमान में देहरादून स्थित गढ़ीकैंट के मिलिटरी हाॅस्पिटल में है। इससे पहले वे सिलीगुड़ी में थीं। तैनाती स्थल और अध्ययन स्थल के बीच बहुत कम दूरी को संध्या अपना सौभाग्य मानती हैं।

आपने अपने सहपाठियों के बीच अपने अफसर होने का खुलासा क्यों नहीं किया, इस सवाल के उत्तर में संध्या कहती हैं कि मैं इस परिसर में विद्यार्थी ही बनकर रहना चाहती हूं, ताकि मेरे और अन्य छात्रों के बीच भेदभाव न हो पाये, ऐसे में मैं छात्र जीवन का आनंद भी नहीं ले पाऊंगी। संध्या के अनुसार वे शाकाहारी हैं और विश्वविद्यालय परिसर में मिलने वाले भोजन और आवास के साथ उन्होंने स्वयं को ढाल लिया है।

कोरोना काल में संध्या ने जनसेवा और देश सेवा का सराहनीय कार्य किया है। इसके लिए उन्हें सम्मान दिया गया। उस समय संध्या कैप्टन थीं। सराहनीय कार्य के लिए उन्हें दो बार सेना मेडल और एक बार विशिष्ट सेना मेडल का सम्मान मिल चुका है।

 

 

क्या कहते हैं निदेशक

 

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम के अनुसार उन्हें भी पहले संध्या के सेना में मेजर होने के विषय में जानकारी नहीं थी। परिसर में प्रवेश के तीन महीने बाद उन्हें जब एक बार अपनी ड्यूटी के कार्य से सिलीगुड़ी जाना था, तब संध्या ने इस विषय में मुझे बताया। मुझे पहले इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। संध्या की विनम्रता और सरलता के कारण लगता नहीं था कि वास्तव में वे सेना में इतने बड़े रैंक पर हैं। संध्या से यह बात पता चली तो मुझे उस समय गौरव की अनुभूति हुई। मैं परिसर के किसी कार्यक्रम में समस्त प्राध्यापकों तथा छात्रों को यह बताने का इच्छुक था। हमारे परिसर में किसी सैन्य अफसर का विद्यार्थी के रूप में अध्ययन करना परिसर ही नहीं, पूरे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात है। संध्या एक सैन्य अफसर हैं, इसकी जानकारी के बाद भी उनके लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। परिसर प्रशासन उन्हें सम्मान के साथ एक छात्रा के रूप में ही देखता है और तदनुरूप व्यवहार करता है। संध्या का मेजर होते हुए पढ़ाई की ललक हमारे अन्य छात्रों के लिए प्रेरणा बनेगी।

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