Friday, January 17, 2025
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सफलता में सकारात्मक सोच का बड़ा योगदान, भारतीय शिक्षण मंडल के दस दिवसीय शिविर का समापन

सफलता में सकारात्मक सोच का बड़ा योगदान

भारतीय शिक्षण मंडल के दस दिवसीय शिविर का समापन

देवप्रयाग। भारतीय शिक्षण मंडल के दस दिवसीय शिविर में सफलता के सूत्रों पर अमल करने पर जोर दिया गया। भारतीय शिक्षण मंडल और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में आयोजित इस 10 दिवसीय ’अनुभूति शिविर’ का समापन हो गया। शिविर के दौरान अलग-अलग दिवसों में विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों ने शिविरार्थियों को संबोधित किया।


समापन अवसर पर मुख्य अतिथि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 ओम प्रकाश सिंह नेगी ने कहा कि जीवन में सफलता के लिए सकारात्मकता, उत्साह और ऊर्जा का होना आवश्यक है। इससे हमें कठिनाई से मुकाबला करने में आसानी होती है। उन्होंने कहा कि युवा किसी भी देश की ऊर्जा के केंद्र होते हैं, इसलिए देश के विकास के लिए उनका तन और मन से स्वस्थ होना जरूरी है। प्रो0 नेगी ने कहा कि पसीना बहाकर सफलता प्राप्त करने का संतोष स्वयं में बड़ा सुख होता है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे दिनभर के कार्यों में से अपने लिए अलग से थोड़ा समय अवश्य निकालें। इस दौरान वे दिनभर किये गये और किये जाने वाले कार्यों के प्रति चिंतन करें और उसकी रूपरेखा बनाएं। आपाधापी, तनाव और बेवजह की भागदौड़ की जिंदगी से युवा दूर रहें।
भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री शंकारानंद ने कहा कि जीवन में सफलता के लिए अपने वस्त्र, वाणी, व्यवहार और विचार पर अवश्य ध्यान दें। ये आपकी पहचान कराने में सहायक और आपके संस्कारों के परिचायक होते हैं। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि हर चुनौती का हंसकर सामना करें। जीवन में श्रवण, मनन, विश्लेषण और संवहन करना सीखें। युवा अपनी दिनचर्या और कर्तव्य बोध पर भी ध्यान दें। इससे वे नीरोग रह पायेंगे। मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्धिकरण भी आवश्यक है। गुरु के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि मन में शिष्यत्व का भाव रखें और अहंकार से दूर रहें।
भारतीय शिक्षण मंडल के दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष प्रो0 अजय कुमार सिंह ने कहा कि युवा पीढ़ी में भटकाव की आशंका रहती है, इसलिए उसे सही मार्गदर्शन मिलना आवश्यक है। इस दृष्टि से यह शिविर बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से युवाओं में प्रबंधन और एकता की भावना विकसित होती है। यह शिविर टीमवर्क का बेहतर नमूना था।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि जब हम किसी भी संस्था में जाते हैं तो वहां के नियमों का पालन करना पड़ता है। दस दिन तक शिविरार्थियों ने भी हमारे छात्रों की तरह ही शुद्ध, सात्विक और साधारण भोजन जमीन में बैठकर जीमा। देवप्रयाग जैसी कम सुविधाओं वाले स्थान पर दस दिन तक समय बिताना स्वयं में एक तपस्या है। उन्होंने कहा कि कम से कम सुविधाओं में जीवन यापना करना कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करने का मार्ग प्रशस्त करता है। प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने शिविरार्थियों के अनुशासन और विनम्रता की सराहना की। इस दौरान शिविरार्थियों ने शिविर के दौरान के अनुभव साझा भी किये। वर्ग प्रमुख डॉ0 धर्मेंद्र तिवारी ने कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 अंजली कायस्था ने किया।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 श्रीनिवास वरखेड़ी का इस शिविर में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। उनके मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम में अलग-अलग दिनों में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने व्याख्यान दिये। इनमें दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो0 सुरेखा डंगवाल ने युवाओं को एक दूसरे से सीखने की प्रेरणा देते हुए कहा कि आप भले ही एक क्षेत्र के विशेषज्ञ बनिए, परंतु थोड़ा-थोड़ा ज्ञान सभी क्षेत्रों का रखना होगा। शोध पर महत्त्वपूर्ण विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति विशुद्ध रूप से मानवता और आत्मा से जुड़ी हुई है। इसका दर्शन अनूठा है। इसीलिए पूरे विश्व में हमारा डंका बजता है। वहीं, गोभक्त संजीवकृष्ण ठाकुर महाराज ने शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी एक मानसिक द्वंद्व से गुजर रही है, यह आज की सबसे बड़ी त्रासदी है, इससे छुटकारा पाना आवश्यक है। मनुष्य दूसरे के बारे में जितना अधिक जानना चाहता है, उतना ही उसे अपने विषय में भी जानना चाहिए। आज हर व्यक्ति अवसाद जैसे मनोरोगों का शिकार है। इससे छुटकारा पाना होगा। हमें भारतीय सभ्यता के नियमों को पूरी तरह जीवन में उतारना होगा। शिविर के दौरान अतिथियों के रूप में उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी अशोक कुमार,आईआईटी रोपड़ के निदेशक प्रो0 राजीव आहूजा इत्यादि की भी उपस्थिति रही।

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