देवप्रयाग: केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में न्याय-दर्शन विभाग की राष्ट्रीय संगोष्ठी
देवप्रयाग: केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में न्याय-दर्शन विभाग की राष्ट्रीय संगोष्ठी
देवप्रयाग_ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में न्याय-दर्शन विभाग की राष्ट्रीय संगोष्ठी में 41 पत्रवाचकों ने राष्ट्रवाद पर शोधपत्र प्रस्तुत किये।
दो दिवसीय इस संगोष्ठी के उद्घाटन पर मुख्य अतिथि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के संस्कृत और प्राच्य विद्या अध्ययन केन्द्र अध्यक्ष प्रो. हरिराम मिश्र ने कहा कि वेद हमें राष्ट्रीय भावना सिखाते हैं। संस्कृत साहित्य राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद की भावना आपसी एकता और प्रेम के लिए आवश्यक है। भारत के प्राचीन ज्ञान का लोहा आज पूरा विश्व मानता है। इसलिए पूरे विश्व में भारत डंका बजता है। भारत का वास्तविक वैभव जानने की इच्छा रखने वाले को यहां शास्त्रों और संस्कृत साहित्य का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट महाविद्यालय के हिन्दी प्रो देवप्रकाश मिश्र ने कहा कि हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु, दिनकर आदि अनेक कवियों ने राष्ट्रीय भावना जाग्रत करने में बड़ी भूमिका निभायी। निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि राष्ट्र सेवा करने के अनेक माध्यम हैं, देश के समस्त नागरिकों को सभी माध्यमों से राष्ट्रसेवा में योगदान देना चाहिए।
न्याय विभाग संयोजक डॉ. सच्चिदानन्द स्नेही ने इस अवसर पर संगोष्ठी में पढ़े गये शोधपत्रों का विवरण दिया। संगोष्ठी के समापर पर मुख्य अतिथि परमार्थ निकेतन के आचार्य संजीव भट्ट ने शोधपत्र वाचकों को प्रमाण पत्र वितरित किये।
भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद के सहयोग से ’भारतीय दर्शन, साहित्य एवं इतिहास में राष्ट्रवाद’ विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में डॉ. शैलेन्द्रनारायण कोटियाल, डॉ. शैलेन्द्रप्रसाद उनियाल, डॉ. वीरेन्द्र सिंह बर्त्वाल, डॉ. सुरेश शर्मा, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. संजीव भट्ट, डॉ. मनीष शर्मा, डॉ.अंकुर वत्स, डॉ. सुधांशु वर्मा, डॉ. श्रीओम शर्मा, जनार्दन सुवेदी, डॉ. आशुतोष तिवारी, पंकज कोटियाल, डॉ. मनीषा आर्या, नवीन डोबरियाल आदि उपस्थित थे।