‘काश ! मैं हिंदी पढ़कर इंजीनियर बना होता’, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में हिंदी पखवाड़ा के उद्घाटन पर बोले-रेल परियोजना के निदेशक
‘काश ! मैं हिंदी पढ़कर इंजीनियर बना होता’, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में हिंदी पखवाड़ा के उद्घाटन पर बोले-रेल परियोजना के निदेशक
देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में हिंदी पखवाड़े के शुभारंभ पर हिंदी को अधिक से अधिक रोजगार से जोड़ने की पैरवी की गयी। मुख्य अतिथि (कर्णप्रयाग रेल परियोजना एल0 एंड टी0 के निदेशक) राकेश अरोड़ा ने कहा कि मैंने दसवीं तक हिंदी पढ़ी है। आगे भी पढ़ना चाहता था, परंतु इंजीनियरिंग की पढ़ाई अंग्रेजी में थी, इसलिए हिंदी छोड़नी पड़ी। यदि मैंने अंग्रेजी के बजाय हिंदी पढ़कर ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई की होती तो मेरा ज्ञान और गहन और व्यापक होता।
उन्होंने कहा कि हिंदी का वर्चस्व लगातार पढ़ रहा है। यहां तक कि दक्षिण में भी अब हिंदी की लोकप्रियता बढ़ने लगी है। हिंदी में पारिभाषिक शब्दों को अधिक से अधिक बढ़ाना चाहिए और इसे रोजगार से जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कम से कम मेडिकल और इंजीनियरिंग में तो हिंदी माध्यम लागू कर ही देना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि रेल परियोजना एल0 एंड टी0 के उपमहाप्रबंध वित्त एवं लेखा चंद्रगुप्त पात्रा ने कहा कि हिंदी राष्ट्रीय एकता में महत्त्वपूर्ण कड़ी है। एक-दूसरे की भाषा न जानने वाले लोग जब विचार अभिव्यक्ति के लिए समस्या में पड़ जाते हैं तो वे हिंदी का ही सहारा लेते हैं। हिंदी भारत में अधिकांश जनों की मातृभाषा है, जो सीधे हृदय को स्पर्श करती है।
सारस्वत अतिथि ओंकारानं राजकी महाविद्यालय की प्रभारी प्रचार्या डॉ0 अर्चना धपवाल ने कहा कि हिंदी भाषा की विशिष्टता ने ही उसे लोकप्रिय बनाया है। शब्द संपदा की समृद्धि के कारण यह भाषा स्पष्ट और प्रभावी है।
अध्यक्षता करते हुए श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने उत्तराखंड की हिंदी के प्रसिद्ध दिवंगत कवियों और कथाकारों, उपन्यासकारों चंद्रकुंवर बर्त्वाल, विद्यासागर नौटियाल तथा इलाचंद्र जोशी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि इस बार हिंदी पखवाड़ा इन्हीं को स्मरण करते हुए मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दक्षिण में हिंदी का कोई विरोध नहीं है। सचाई यह है कि हिंदी प्रेमी लोग दक्षिण को हिंदी अपनाने की बात सही ढंग से समझा नहीं पाये। दक्षिण में हिंदी के प्रति दुराग्रह न पहले था और न अब है। विशिष्ट व्याख्यान में ज्योतिष विभाग के प्राध्यापक डॉ0 ब्रह्मानंद मिश्र ने हिंदी की उपयोगिता बताते हुए कहा कि हिंदी के प्रति कुछ लोगों के मन मंे हीन ग्रंथि बनी हुई है, उसे निकालने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत से उद्भूत हिंदी में संस्कृत के समान ही अनेक गुण हैं, इस मामले में अंग्रेजी उसके सामने टिकती नहीं है। हिंदी को स्वाभिमान के साथ जोड़ना होगा।
इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक डॉ0 वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल ने प्रस्तावना प्रस्तुत की। शुभारंभ अवसर पर वेद विभाग के छात्रों ने वैदिक और अर्चना नौडियाल ने लौकिक मंगलाचरण किया।
मोनिका नौगाईं ने गढ़वाली में मंगलाचरण किया। अर्चना, पूजा नेगी, आस्था, शोबिता और अनुष्का ने गढ़वाली में सरस्ती वंदना प्रस्तुत की। स्वागत भाषण कशिश भट्ट तथा धन्यवाद ज्ञापन अभिषेक पाठक ने किया। संचालन हिमांशु भट्ट ने किया। इस अवसर पर सह संयोजक डॉ0 अमंद मिश्र, रजत गौतम छेत्री, डॉ0 शैलेन्द्र कोटियाल, डॉ0 अरविंद सिंह गौर, डॉ0 डॉ0 अमंद मिश्र, पंकज कोटियाल, डॉ0 सच्चिदानंद स्नेही, डॉ0 अनिल कुमार, डॉ0 आशुतोष वर्मा, डॉ0 रश्मिता, डॉ0 अवधेश बिज्ल्वाण,डॉ0 श्रीओम शर्मा, डॉ0 सुरेश शर्मा, डॉ0 सोमेश बहुगुणा आदि उपस्थित थे।