Saturday, September 7, 2024
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यथार्थ ज्ञान का प्रतिपादन करता है न्याय शास्त्र, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर,देवप्रयाग में कार्यशाला

यथार्थ ज्ञान का प्रतिपादन करता है न्याय शास्त्र
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केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर,देवप्रयाग में कार्यशाला

देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर,देवप्रयाग में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सौजन्य से आयोजित राष्ट्रीय मूलपाठ अध्ययन कार्यशाला का समापन हो गया।
सात दिवसीय यह कार्यशाला नरोत्तम भट्ट विरचित ‘न्यायलक्षणसंग्रह’ पर केंद्रित थी। समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के संस्कृत प्राच्यविद्या अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ आचार्य प्रो.रामनाथ झा ने कहा कि न्याय शास्त्र यथार्थ ज्ञान का प्रतिपादन और व्याख्या करता है। यथार्थ ज्ञान का प्रतिपादन भाषा की सम्यक अभिव्यक्ति पर निर्भर करता है। न्याय दर्शन का भाषा दर्शन सत्य तक पहुंचने का सर्वोत्तम साधन है।

सारस्वत अतिथि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के शैक्षणिक संकाय अधिष्ठाता वरिष्ठ आचार्य प्रो.बनमाली बिश्वाल ने न्यायशास्त्र की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए स्वरचित पद्य में न्याय लक्षण कार्यशाला के वृत्तांत को अभिव्यक्त किया। उन्होंने न्यायशास्त्र की प्रवृत्ति के तीनों चरणों की परिभाषा पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रभारी निदेशक प्रो.चंद्रकला आर.कोंडी ने कहा कि ज्ञान के प्रसार और संरक्षण में ऐसी कार्यशालाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं।


कार्यक्रम संयोजक डॉ.सच्चिदानंद स्नेही ने संपूर्ण कार्यक्रम की आख्या प्रस्तुत की। संचालन जनार्दन सुवेदी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ.आशुतोष तिवारी ने किया। इस अवसर पर विभन्न क्षेत्रों से आए प्राध्यापक तथा प्रतिभागी उपस्थित थे।

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