प्राकृतिक आपदाओं के लिए मनुष्य ही दोषी, रघुनाथ कीर्ति परिसर में राष्ट्रीय सेमिनार में पढ़े गए 60 शोध-पत्र
प्राकृतिक आपदाओं के लिए मनुष्य ही दोषी, रघुनाथ कीर्ति परिसर में राष्ट्रीय सेमिनार में पढ़े गए 60 शोध-पत्र
देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में पर्यावरण पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के लिए मनुष्य जिम्मेदार है। पर्यावरण के प्रति हमें अपने चिंतन को व्यापक करना होगा। विकास ऐसा हो कि पर्यावरण को क्षति न पहुंचे। संगोष्ठी में 60 शोध-पत्रों का प्रस्तुतिकरण किया गया।
’पर्यावरण जागरूकता एवं सतत विकास: भारतीय परिप्रेक्ष्य एवं संस्कृत साहित्य के संदर्भ में’ विषय पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित इस सेमिनार का शुभारंभ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के संस्कृत प्राच्य विद्या अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ आचार्य रामनाथ झा ने किया। उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्रों में पृथ्वी को माता कहा गया है, इसलिए इसे किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य की गलतियों और लापरवाहियों के कारण भू-स्खलन, हिम स्खलन हो रहे हैं, नदियों का जलस्तर घट और समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है। यह भविष्य के लिए गंभीर संकेत हैं।
विशिष्ट अतिथि प्रो0 पंकज मिश्र ने कहा कि विकास में पर्यावरण का ध्यान रखा जाना आवश्यक है। प्रो0 सरस्वती ने कहा वेदों में प्रकृति की रक्षा के लिए अनेकों मंत्र हैं। इसका अर्थ है कि भारत का चिंतन आदिकाल से पर्यावरण की रक्षा का रहा है।
अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि हमें अपने चिंतन में पर्यावरण को प्रमुखता देनी होगी। प्लास्टिक आज के समय में पर्यावरण का सबसे बड़ा शत्रु बन चुका है। इस समस्या से निपटने में सभी नागरिकों को जागरूकता के साथ योगदान देना होगा।
समापन अवसर पर मुख्य अतिथि एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो0 एमएम सेमवाल ने पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों पर चिंता व्यक्त करते हुए विभिन्न उपाय सुझाये। विशिष्ट अतिथि प्रो0 आशुतोष गुप्ता ने संस्कृत साहित्य में पर्यावरण के महत्त्व को रेखांकित किया। भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के सहायक आचार्य डॉ0 विपिन कुमार झा ने संस्कृत साहित्य के अंतर्गत ’किरातार्जुनीयम्’ में पर्यावरण एवं पारिस्थिकी को लेकर प्रस्तुति दी।
अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक ने कहा कि परिसर में पर्यावरण एवं पारिस्थिकी की दृष्टि से विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यहां आंवला, अमरूद, आम, बेल, बांज इत्यादि के पांच सौ पौधे लगाये गये हैं। जितना महत्त्वपूर्ण कार्य पौधा लगाना है, उससे अधिक महत्त्वपूर्ण उनकी रक्षा करना है।
कार्यक्रम संयोजक दर्शन विभाग के संयोजक डॉ0 सच्चिदानंद स्नेही ने संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि देशभर से आये विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों के विद्वानों तथा शोध छात्रों ने संगोष्ठी में भाग लिया। इसमें ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों विधियों से पत्र पढे़ गये। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 मनीष शर्मा ने किया। इस अवसर पर डॉ0 ब्रह्मानंद मिश्र, डॉ0 अरविंद सिंह गौर, जनार्दन सुवेदी, डॉ0 अमंद मिश्र आदि उपस्थित थे।