हिन्दी के विकास में उत्तराखंड का अतुलनीय योगदान, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग में हिंदी पखवाड़ा का उद्घाटन
हिन्दी के विकास में उत्तराखंड का अतुलनीय योगदान, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग में हिंदी पखवाड़ा का उद्घाटन
’श्री रघुनाथ कीर्ति हिन्दी सेवा सम्मान’ पुनर्जीवित, निदेशक ने की घोषणा
देवप्रयाग। वरिष्ठ पत्रकार डॉ0 प्रभाकर जोशी ने कहा कि उत्तराखंड ने हिन्दी के संरक्षण, विकास और प्रचार-प्रसार में अतुलनीय योगदान दिया है। छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत, डॉ0 पीतांबर दत्त बड़थ्वाल, गुमानी पंत, मनोहर श्याम जोशी जैसे साहित्यकार उत्तराखंड ने दिये हैं। इस प्रदेश में महिला रचनाकार भी काफी अधिक संख्या में रही हैं। शिवानी, मृणाल पांडेय इनमें शामिल हैं। इसलिए वर्तमान पीढ़ी की बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि वह हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए और आगे आए।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आयोजित हिंदी पखवाड़ा कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत का अध्येता हिंदी की बेहतरीन रक्षा कर पाता है। संस्कृत के अध्येताओं को हिन्दी का और गहन अध्ययन करना चाहिए तथा हिंदी के विद्वानों को संस्कृत का भी अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि दोनों भाषाओं का आपस में घनिष्ठतम संबंध है। उन्होंने कहा कि हमारे देश के संस्कृत विश्वविद्यालय और महाविद्यालय संस्कृत के साथ ही हिंदी के प्रचार-प्रसार में योगदान दे रहे हैं, क्योंकि संस्कृत वाले लोग दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी को महत्त्व देते हैं।
विशिष्ट वक्ता न्याय विभाग के सहायक आचार्य जनार्दन सुवेदी ने कहा कि भाषा कोई भी हो, उसमें सीमा से अधिक दूसरी भाषा का मिश्रण नहीं होना चाहिए। हिंदी में परिवर्तनशीलता तथा दूसरी भाषा के शब्दों को आत्मसात करने की सामर्थ्य है, परंतु कुछ लोग अनावश्यक रूप से इसमें विदेशी शब्दों का प्रयोग करते हैं, यह हिंदी के स्वरूप के लिहाज से सही नहीं है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि हिन्दी के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसी एक विद्वान को केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर द्वारा ’श्री रघुनाथ कीर्ति हिन्दी सेवा सम्मान’ दिया जाएगा। 2018 में यह सम्मान शुरू किया गया था, परंतु बाद में कुछ कारणों से बंद हो गया था, अब इसे पुनर्जीवित किया गया है और यह प्रतिवर्ष अनवरत दिया जाएगा। इसमें पांच हजार रुपये नगद तथा प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।
प्रो0 सुब्रह्मण्यम ने कहा कि भाषा कोई भी बुरी नहीं होती है, जो भाषा जिसके लिए अनुकूल, सहज और उपयोगी हो, वही भाषा उसे अच्छी लगती है। उन्होंने कहा कि परिसर में हम हिंदी भाषा लेखन परिषद का गठन करने जा रहे हैं। ताकि हिंदी लेखन में रुचि रखने वाले बच्चों की साहित्य लेखन और पत्रकार प्रतिभा निखर पाए।
उन्होंने कहा कि परिसर में धीरे-धीरे सुविधाएं जुटाई जा रही हैं। अभी अध्ययन-अध्यापन लायक काफी सुविधाएं उपलब्ध हैं। बच्चों को अधिक से अधिक सुविधाओं को भोगने के बजाय अपने मुख्य उद्देश्य पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। उनके लक्ष्य हासिल करने में यहां कोई भी असुविधा बाधा नहीं बन रही है। परिसर की स्थापना काल के आरंभिक चरण की अपेक्षा यहां पर्याप्त सुविधायें उपलब्ध हो चुकी हैं।
संयोजक डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल ने पखवाड़ेभर आयोजित की जाने वाली हिन्दी आधारित स्पर्धाओं का ब्योरा प्रस्तुत किया। उन्होंने अलग-अलग कक्षा वर्ग के छात्रों तथा गैरशिक्षण कार्मिकों के लिए सात प्रकार की प्रतियोगिताएं होंगी। इनमें आशु कविता, श्रुतलेख, भाषण और हिंदी सामान्य ज्ञान स्पर्धा शामिल हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक छात्रों के मंगलाचरण, लौकिक मंगलाचरण और सरस्वती वंदना से हुआ। संचालन हिमांशु भट्ट ने किया। अतिथि परिचय मधु यादव ने कराया। धन्यवाद ज्ञापन भास्कर खंकरियाल ने किया। कार्यक्रम के संपूर्ण आयोजन कमान पहली बार पूरी तरह छात्रों के हाथों में रही। निदेशक प्रो. सुब्रह्मण्यम ने इसकी सराहना करते हुए आगे भी इस परंपरा के निर्वाह की बात कही।
इस अवसर पर डॉ0 शैलेन्द्र कोटियाल, डॉ0 चंद्रकला आर0कोंडी, डॉ0 सुशील प्रसाद बडोनी, डॉ0 अरविंद सिंह गौर, डॉ0 आशुतोष तिवारी, डॉ0 ब्रह्मानंद मिश्र, डॉ0 दिनेशचंद्र पाण्डेय, डॉ0 मनीषा आर्या, डॉ0 अमंद मिश्र, पंकज कोटियाल आदि उपस्थित थे।