Monday, January 20, 2025
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संस्कृत साहित्यकारों के लिए प्रेरणा है वाल्मीकि रामायण, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी ने आयोजित की संगोष्ठी

संस्कृत साहित्यकारों के लिए प्रेरणा है वाल्मीकि रामायण, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी ने आयोजित की संगोष्ठी

देवप्रयाग। वाल्मीकि रामायण संस्कृत साहित्य की अनूठी धरोहर है। यह संस्कृत जगत में महाकाव्य विधा के लिए अनुपम प्रेरणा है। यह बात उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कही गयी। वक्ताओं ने कहा कि रामायण में अलंकार संपदा और ध्वनि तत्त्व उच्च कोटि का है।
पौड़ी जनपद में वाल्मीकिरामायणे काव्यतत्त्वम्” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर के व्याकरणविभाग में सहायकाचार्य डा. गोविन्द पौडेल ने कहा कि रामायण से संस्कृत के अनेक कवियों और लेखकों को रचना की प्रेरणा और सामग्री प्राप्त हुयी है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. शैलेन्द्र प्रसाद उनियाल ने वाल्मीकि रामायण को सनातन धर्म का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ बताते हुए उसके कथानक का विश्लेषण किया।
मुख्य वक्ता केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर,देवप्रयाग की साहित्य विभाग की आचार्य प्रो. चन्द्रकला आर. कौण्डी ने कहा कि वाल्मीकि रामायण अपने बाद के संस्कृत साहित्य ही नहीं,हिंदी साहित्य के लिए भी उपजीव्य ग्रंथ बनी है। सहवक्ता उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग के सहायकाचार्य डा. कञ्चन तिवारी ने वाल्मीकि रामायण के काव्यशास्त्रीय स्वरूप पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की अध्यक्षता परिसर निदेशक प्रो. पी.वी.बी. सुब्रह्मण्यम् ने की। उन्होंने कहा कि तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ पर वाल्मीकि रामायण की छाया है।
कार्यक्रम का संयोजन पौड़ी जनपद संयोजक डॉ. दिनेश चन्द्र पाण्डेय एवं सह संयोजन डॉ. ब्रह्मानन्द मिश्रा ने किया। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड राज्य के एवं देश के विभिन्न स्थानों से लगभग 60 प्रतिभागी उपस्थित रहे।

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