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श्रीमद्भगवद्गीता जयन्ती मास महोत्सव के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के तत्वावधान में पौडीगढ़वाल जनपद द्वारा विद्वद् संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

श्रीमद्भगवद्गीता जयन्ती मास महोत्सव के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के तत्वावधान में पौडीगढ़वाल जनपद द्वारा विद्वद् संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

गीता जयन्ती मास महोत्सव के उपलक्ष्य में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के तत्वावधान में पौडीगढ़वाल जनपद द्वारा दिनाँक- 18 जनवरी 2024 को दोपहर 2:00 बजे से गूगल मीट के माध्यम से विद्वत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का मुख्य विषय श्रीमद्भगवद्गीता में पुरुषार्थ चतुष्टय था। जिसमें मुख्यवक्ता के रूप में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, एकलव्य परीसर, अगरतला त्रिपुरा के अद्वैत वेदान्त विभाग के समन्वयक डॉ. श्रीकर जी.एन जी थे उन्होंने अपने वक्तव्य में श्रीमद्भगवद्गीता में उपदिष्ट पुरुषार्थ चतुष्टय के विषय में सारगर्भित वक्तव्य उपस्थापित करते हुए मनुस्मृति में वर्णित-
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥
इत्यादि धर्म के दसों लक्षणों की सविस्तार व्याख्या प्रस्तुत की। सहवक्ता के रूप में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्रीरघुनाथ कीर्ति परीसर के न्याय विभाग के सहायकाचार्य श्री जनार्दन सुवेदी जी थे। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता में योग इस विषय पर अपना ओजस्वी वक्तव्य दिया। विशिष्टातिथि के रूप में महिप्रकाश मठ हरचण्डी साही, पुरी, उड़ीसा के महन्त स्वामी सुभानन्द गिरी जी ने अपने उद्बोधन में कहा की हमें धर्म के अधीन रहकर धनार्जन करना चाहिए तथा अपनी कामनाओं की पूर्ति करते हुए मोक्ष के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए यही परमपुरुषार्थ है। साथ ही उन्होंने कि हमें इस प्रकार की संगोष्ठियों का आयोजन निरन्तर करते रहना चाहिए जिससे समाज को शास्त्रों में निहित ज्ञान का लाभ मिल सके। कार्यक्रम के अध्यक्ष केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्रीरघुनाथ कीर्ति परीसर, देवप्रयाग के यशस्वी निदेशक प्रो.पी.वी.बी सुब्रमण्यम जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि जीवन के लिए जो भी अपेक्षित है वह श्रीमद्भगवद्गीता में है तथा जीवन के सभी प्रश्नों का समाधान गीता में है। कार्यक्रम में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्रीरघुनाथ कीर्ति परीसर, देवप्रयाग के ज्योतिष विभाग के समन्वय तथा पौडीगड़वाल जनपद के संयोजक डॉ. ब्रह्मानन्द मिश्रा जी ने किया तथा प्रस्ताविक भाषण उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के राज्य संयोजक व शोधाधिकारी डॉ. हरीश गुरुरानी जी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन व धन्यवाद पौडी जनपद के सह संयोजक केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्रीरघुनाथ कीर्ति परीसर, देवप्रयाग के साहित्य विभाग के सहायकाचार्य डॉ. दिनेश चन्द्र पाण्डेय जी ने किया। इस आभासीय संगोष्ठी में श्रीरघुनाथ कीर्ति परीसर के सभी प्राध्यापक व देश के विभिन्न राज्यों से अनेक श्रोतागण उपस्थित रहे।

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