ज्ञान अर्जन के लिए अपनी भाषा जरूरी: भट्ट, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग में भाषा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
ज्ञान अर्जन के लिए अपनी भाषा जरूरी: भट्ट, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग में भाषा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के सहयोग से श्री रघुनाथ कीर्ति में हो रहा आयोजन
देवप्रयाग। भाषा से किसी व्यक्ति की पहचान ही नहीं होती है, भाषा के कारण किसी क्षेत्र विशेष की भी पहचान होती है। भाषा का लोक से गहरा संबंध होता है। नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है, यह पहल गुलामी की भाषा से मुक्ति के लिए अहम साबित होगी। यह बात सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि कही। उन्होंने कहा कि हम अपनी भाषा में सहज अभिव्यक्ति कर पाते हैं, उसमें जल्दी सीख पाते हैं, इसलिए ज्ञान अर्जन और अभिव्यक्ति की अपनी भाषा ही होनी चाहिए। ’लोक व्यवहार एवं संस्कृत शास्त्रों के अधिगम में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली की उपयोगिता’ विषय पर आयोजित सेमिनार में सूचना आयुक्त श्री भट्ट ने कहा कि भारत जैसे विशाल और बहुभाषी देश में भाषा पर कार्य करना चुनौती है, परंतु यह कार्य सराहनीय भी है। भाषा का संबंध आविष्कार से होता है, अतः ऐसे दूसरी भाषा के शब्दों को अपने देश की भाषाओं में प्रचलन में लाना कठिन कार्य है। उन्होंने इस क्षेत्र में कार्य कर रहे वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि आयोग को अपने बनाये शब्दों का वृहद् स्तर पर प्रचार-प्रसार भी करना होगा।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के चेयरमैन प्रो0 गिरीशनाथ झा ने कहा कि संविधान की अनुसूची में वर्तमान में 22 भारतीय भाषायें हैं, इनमें 38 और भाषायें भी जुड़ सकती हैं। उन्होंने कहा कि आयोग अंग्रेजी के अनेक शब्दों को भारतीय भाषाओं में परिवर्तित करने में सफल हुआ है। अभी तक तीन लाख ऐसे शब्द निर्मित किये जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि भाषा के चलन का आधार व्यवहार होता है। हमें शब्दों को व्यवहार में ढालना होगा, तभी भाषाएं विकसित, संरक्षित और प्रचारित-प्रसारित होती हैं। आयोग ऐसे अनेक प्रयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं के पोषण में मील का पत्थर साबित हो रही है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर बृजेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि जब तक हम किसी भाषा से अपना गौरव नहीं जोड़ लेते तब, तक वह भाषा आगे नहीं बढ़ सकती है। भाषा नदी की तरह होती है, जो अपने में बहुत सारे शब्दों को समाहित करके चलती है और रूप बदलती रहती है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग भाषा पर अच्छा कार्य कर रहा है। प्रो0 पाण्डेय ने कहा कि भाषाओं को समय और भूगोल प्रभावित करता है। हमें अपनी भाषाओं को अक्षुण्ण रखने की पहल करनी होगी।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के सहायक निदेशक जेएस रावत ने कहा कि भारतीय भाषाओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए आयोग पिछले लगभग 60 वर्ष से कार्य कर रहा है। तकनीक एवं चिकित्सा क्षेत्र में आयोग के बनाये अनेक शब्द प्रचलन में आ चुके हैं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा कि यह संगोष्ठी भाषायी दृष्टि से बहुत अहम है। संस्कृत और हिन्दी के विद्यार्थियों को कक्षाओं के साथ ही ऐसी संगोष्ठियों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि भाषा हमारे व्यक्तित्व को गंभीरता से प्रभावित करती है, इसलिए भाषा के प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस परिसर में देश के 16 राज्यों के विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। इस लघु भारत में भाषा पर कार्यक्रम होना महत्त्वपूर्ण है।
इससे पहले कार्यक्रम के समन्वयक डाॅ0 सच्चिदानंद स्नेही ने संगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि परिसर में आयोग का यह पहला कार्यक्रम है। यह हमारे परिसर और उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है। आरंभ में धनंजय देवराड़ी और कोमल शर्मा की टीम ने कंेद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया। वेद विभाग संयोजक डाॅ0 शैलेंद्र प्रसाद उनियाल ने वैदिक मंगलाचरण तथा धनंजय देवराड़ी ने लौकिक मंगलाचरण किया।
इस अवसर पर अतिथियों ने अगस्त्यमुनि महाविद्यालय में हिंदी की सहायक आचार्य डाॅ0 शशिबाला रावत की हिंदी पुस्तक ’ हिंदी साहित्य: आदिकाल से भक्तिकाल’का विमोचन भी किया।
कार्यक्रम का संचालन न्याय विभाग के प्राध्यापक जनार्दन सुवेदी और धन्यवाद ज्ञापन हिंदी प्राध्यापक तथा जनसंपर्क अधिकारी डाॅ0 वीरेंद्र सिंह बत्र्वाल ने किया। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के डीन आॅफ अकेडमिक अफेयर और श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के पूर्व निदेशक प्रो0 बनमाली बिश्वाल, प्रो0 चंद्रकला आर0 कोंडी, डाॅ0 अनिल कुमार, डाॅ0 शैलेंद्र प्रसाद उनियाल, डाॅ0 सूर्यमणि भंडारी, डाॅ0 शैलेंद्र नारायण कोटियाल, डाॅ0 सुशील बडोनी, डाॅ0 सुरेश शर्मा, डाॅ0 आशुतोष तिवारी, अमित बंदोलिया, डाॅ0 अरविंद सिंह गौर, पंकज कोटियाल, डाॅ0 अमंद मिश्र, डाॅ0 मनीष शर्मा, डाॅ0 मनीषा आर्या, डाॅ0 दिनेशचन्द्र पाण्डेय, डाॅ0 धनेश, डाॅ0 सुधांशु वर्मा, डॉ.अंकुर वत्स, डाॅ0 श्रीओम शर्मा समेत अनेक उच्च शिक्षण संस्थानों से आये प्रोफेसर, शोधार्थी तथा विद्यार्थी उपस्थित थे।
(डॉ.वीरेंद्रसिंह बर्त्वाल, जनसंपर्क अधिकारी)