भौतिकवादी लोगों पर वर्चस्व कायम करें संस्कृत पढ़ने वाले: रामदेव, पतंजलि में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का शास्त्रोत्सव
भौतिकवादी लोगों पर वर्चस्व कायम करें संस्कृत पढ़ने वाले: रामदेव, पतंजलि में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का शास्त्रोत्सव
डॉ वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल
हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति स्वामी रामदेव ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों और नेपाल से विभिन्न संस्कृत विद्वानों को सम्मानित किया। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में आयोजित की जा रही अखिल भारतीय संस्कृत शास्त्रीय स्पर्धाओं में निर्णायक के रूप में आये इन विद्वानों और मार्गदर्शकों को अंगवस्त्र और पुस्तकें आदि भेंट करने के बाद स्वामी रामदेव ने कहा कि शास्त्र रक्षा के लिए स्मृति आवश्यक है, परंतु विद्यार्थियों को चाहिए कि वे शास्त्रों को आचरण में भी उतारें। तभी विश्व और मानवता का कल्याण संभव है। संस्कृतज्ञों को अपने पुरुषार्थ के बल पर पूरे विश्व में अपना वर्चस्व कायम करना होगा।
योग गुरु रामदेव ने कहा कि संस्कृत में ब्रह्मांड की सभी भाषाओं का समावेश है। कुछ लोग एक विषय पढ़कर स्वयं को ज्ञानी समझते हैं, यह अज्ञान है। जीवन का संपूर्ण विकास संस्कृत में ही है। संस्कृत को जीना ही जीवन का वास्तविक लक्ष्य होना चाहिए। मनोविज्ञान भी इस बात को मानता है कि व्याकरण का सम्यक अध्ययन करने से संपूर्ण विषयों का ज्ञान हो सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसमें संस्कृत पढ़ा व्यक्ति सफल नहीं हो पाता है। हमने संस्कृत पढ़कर ही विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की है। संस्कृत की महिमा अनंत है। एक ब्रह्मचारी के आगे राजा भी नतमस्तक हो जाता है।
स्वामी रामदेव ने कहा कि बड़ी विडम्बना है कि हमारे यहां इतिहास के नाम पर झूठ परोसा गया है। संस्कृत और ब्राह्मण की उपेक्षा की गयी है। हमने डटकर इसका विरोध किया है। संस्कृतज्ञों में इतनी शक्ति है कि वे वेद के परा-अपरा ज्ञान के आधार पर दुनिया में अपना साम्राज्य खड़ा कर सकते हैं। संस्कृत के लोग पूजा-पाठ तक ही सीमित न रहें। वे भौतिकवादी लोगों का नेतृत्व करें और राष्ट्र की जागृति के पुरोहित बनें। स्वामी रामदेव ने देश के विभिन्न कोनों से विभिन्न संस्कृत शास्त्रीय स्पर्धाओं में भाग लेने वाले विद्यार्थियों से कहा कि प्रतियोगिताओं में जो भी भाग लेता है, वह विजेता ही होता है। प्रथम, द्वितीय, तृतीय तो कुछ नंबरों के अंतर से आते हैं।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का यह आयोजन आत्मोत्सव और ज्ञानोत्सव है। स्वामी रामदेव ने पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 विजयकुमार सीजी, प्रो0 बृजभूषण ओझा, डॉ0 शैलेश कुमार तिवारी, प्रो0 धनंजय कुमार पांडेय, प्रो0 नारायण भट्टराई, प्रो0 रामलखन पाण्डेय आदि को सम्मानित किया। इससे पहले कंेद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 श्रीनिवास वरखेड़ी ने शास्त्र महाकुंभ का प्रास्ताविक प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि गंगा के तट पर हरिद्वार जैसे पवित्र तीर्थ स्थान पर देश के चुनिंदा संस्कृत के विद्वानों और स्पर्धालुओं का एकत्र होना हमारे लिए सौभाग्य की बात हैै। उन्होंने कहा कि ये स्पर्धालु शास्त्रों की मलाई है। यही मलाई शास्त्रों की रक्षक और प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।
इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने अपने विद्यार्थी जीवन के गुरुकुल के समय को याद करते हुए स्वामी रामदेव और अपने जुड़े संस्मरण सुनाये। उन्होंने कहा कि कठिन परिश्रम करने के बाद जब कोई विद्यार्थी स्पर्धा में विजेता बनता है तो उस उपलब्धि का आनंद अवर्णनीय होता है।
विद्वान सभा के सम्मान के बाद पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने योग और गीत-संगीत से जु़ड़ी विभिन्न आकर्षक प्रस्तुतियां दीं। छात्राओं ने गढ़वाली, हिमाचली, गुजराती, हरियाणवी, पंजाबी, उड़िया इत्यादि राज्यों के लोकगीत और लोकनृत्य प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन प्रो0 मधुकेश्वर भट्ट ने किया। इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय की संकाय अध्यक्ष प्रो0 साध्वी देवप्रिया, उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति प्रो0 दिनेश शास्त्री, डॉ0 बाजश्रवा आर्य, डॉ0 निरंजन मिश्र, डॉ0 बृजेंद्रकुमार सिंहदेव आदि उपस्थित थे।