संस्कृत और सेना के अनुराग ने पूरी की तमन्ना,फौज में धर्मगुरु बने श्री रघुनाथ कीर्ति के छात्र कमल की संघर्ष गाथा
संस्कृत और सेना के अनुराग ने पूरी की तमन्ना,फौज में धर्मगुरु बने श्री रघुनाथ कीर्ति के छात्र कमल की संघर्ष गाथा
देवप्रयाग। धैर्य, दृढ़ संकल्प और अथक परिश्रम….और इसके बाद सफलता आपके पास स्वयं खिंची आएगी। यकीन नहीं तो कमल किशोर से पूछ लीजिए, जिन्होंने छः साल के कठिन संघर्ष के बूते हाल ही में भारतीय सेना में धर्मगुरु जूनियर कमीशंड ऑफिसर (आरटी जेसीओ) की भर्ती में सफलता प्राप्त की है। हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत की कमल को इस मुकाम को दिलाने में बड़ी भूमिका है। कमल ने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में ज्योतिष में आचार्य किया है। उन्होंने कर्मकांड में डिप्लोमा भी किया।
अब आते हैं कमल की संघर्ष गाथा पर। कमल ने 2018 में श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर से शास्त्री तृतीय वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण की। तमन्ना पहले से ही सेना की वर्दी पहनने की थी, इसलिए उसी साल से सेना में जाने की तैयार शुरू कर दी। साधारण परिवार, भाई घर का खर्चा चलाता था। पिता जी का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। भाई नौकरी पर था तो कमल को ही पिता जी के उपचार के लिए विभिन्न शहरों में जाना पड़ा, अनेक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। पिता का साया उठा तो शोक को दिल में दबाकर कमल फिर तैयारी में उतर पड़ा। आचार्य की पढ़ाई भी जारी रखी। सुबह-सुबह देवप्रयाग की सड़कों पर दौड़ लगाना, दंड-बैठक करना और पाठ्यक्रम के साथ ही फौज की प्रतियोगी परीक्षा की भी तैयारी। एक क्षण भी बेकार नहीं। ग्यारहवीं की पढ़ाई के दौरान से ही फौज में जाने की तैयारी कर दी थी, परंतु 2019 में पूरी ताकत झोंक दी।
2019 में पहली बार आरटी जेसीओ की विभिन्न परीक्षाएं पास कीं, लेकिन इंटरव्यू में बाहर हो गये। हिम्मत नहीं हारी। फिर 2021 में भर्ती के लिए प्रयास किया, फिजिकल-मेडिकल पास हो गया, परंतु भर्ती ही निरस्त हो गयी। 2022 में फिर प्रयास किया, परंतु सब कुछ क्वालीफाई होने के बाद मेडिकल में बाहर। अनेक लोगों ने बोला कि तुम्हारी किस्मत फौज के लिए नहीं है। कमल का मानना था कि किस्मत को लोग असफलता से जोड़ते हैं, सफलता से नहीं। कमल ने प्रयास जारी रखा और 2023 में फिर प्रयास किया। उस साल लिखित परीक्षा पास की। 2024 में फिजिकल और इंटरव्यू में पास हुआ। इस वर्ष आरटी जेसीओ पद प्राप्त करने की उनकी तमन्ना पूरी हो गयी।
कमल का मानना है कि छः साल का यह मेरा समय कठिनाइयों भरा रहा, परंतु इस काल खंड ने मुझे बहुत सिखाया भी है। संस्कृत और सेना के प्रति मेरे अनुराग ने मुझे यह मुकाम दिया है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मेरी संकल्पशक्ति और आत्मनियंत्रण ने बड़ा योगदान दिया है। कमल के अनुसार देवप्रयाग की धरती मेरे संघर्ष में प्रेरणा बनी। यहां की कठिनाइयों को देखकर मैं अपनी कठिनाइयां भूल जाता था। कमल ने बताया कि मैं पढ़ाई के दौरान वे मोबाइल की दुनिया से पूरी तरह कटे रहे। केवल प्रतियोगी परीक्षाओं संबंधी जानकारियां जुटाने के लिए ही कभी-कभार मोबाइल का इस्तेमाल करते थे।
कमल ने बताया कि संस्कृत के क्षेत्र में अब रोजगार की बहुत संभावनाएं बन रही हैं। इस भाषा में प्रतिष्ठा और रोजगार दोनों हैं, आवश्यकता केवल परिश्रम और त्याग की है। श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर से मैंने यही सीखा है। कमल के अनुसार जिस दिन मैं अपने बदन पर फौज की हरी वर्दी पहनूंगा, उस दिन सबसे पहले श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर को याद करूंगा।
परिसर निदेशक प्रोफेसर पीवीबी सुब्रह्यण्यम का कहना है कि श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में पढ़ने वाले सभी छात्रों को कमल किशोर से प्रेरणा लेनी चाहिए। कमल का यह अथक परिश्रम सभी संस्कृत छात्रों और विशेषतर फौज में जाने वाले बच्चों के लिए एक सबक है। उन्होंने कमल किशोर को शुभकामनाएं दीं।
(डॉ वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, जनसंपर्क अधिकारी)